महान व्यक्तित्व >> सम्राट अशोक सम्राट अशोकप्राणनाथ वानप्रस्थी
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प्रस्तुत है सम्राट अशोक का जीवन परिचय...
अशोक-चक्र
सम्राट् अशोक के दादा सम्राट् चन्द्रगुप्त के समय आचार्य चाणक्य द्वारा चलाए गए तक्षशिला विश्वविद्यालय का नाम इतिहास में अमर है।
सम्राट् अशोक के छः सौ वर्ष बाद हमारे देश में गुप्त-वंश के राजाओं ने राज्य किया। सम्राट् हर्ष के समय नालन्दा विश्वविद्यालय संसार में प्रसिद्ध हुआ। इसमें छः सौ से लेकर सात सौ प्रौफेसर पढ़ाते थे। देश-विदेश के सहस्रों विद्यार्थी शिक्षा पाते थे। इस महान् विश्वविद्यालय को चलाने के लिए राज्य की ओर से अनेक ग्राम दान दिए गए थे।
शासन चलाने में भी सम्राट् अशोक बड़ा योग्य सिद्ध हुआ। जहां एक ओर वह युद्ध को बहुत बुरी दृष्टि से देखता था, वहां राज्य में गड़बड़ी करनेवालों को कठोर-से-कठोर दंड देने में न हिचकिचाता था।
अशोक के मंत्रिमंडल में ब्राह्मण-बौद्ध और सभी विचारों के मंत्री थे। जब कभी वह भूल करता, मंत्रियों को उसे रोकने का अधिकार था। एक बार अशोक भिक्षुओं के रहने के लिए विहार 'भवन' बनवाना चाहता था। मंत्रिमंडल इसके विरुद्ध था। प्रधानमंत्री ने कोषाध्यक्ष को मना कर दिया। सुनकर सम्राट् को दुःख तो हुआ, पर मन्त्रियों के आगे सिर झुकाना पड़ा।
सम्राट् अशोक अपने को प्रजा का ऋणी मानते थे। सम्राट् स्वयं भेस बदलकर प्रजा से कष्ट मिटाने के लिए निकलते थे। स्थान-स्थान पर गुप्तचर घूमते थे जिनका काम था-समय-समय पर सम्राट् को प्रजा के कष्टों की कहानी सुनाना।
सीमा-प्रान्तों में शासन के लिए सम्राट् राजकुमार को भेजते थे। जिनका नियंत्रण स्वयं करते थे; उनके नाम हैं-उत्तरापथ (राजधानी तक्षशिला), अवन्तिरथ (राजधानी, उज्जैन), दक्षिणापथ (राजधानी, स्वर्णगिरी), कलिंग (राजधानी, तोसाली)।
अवन्तिरथ (उज्जैन) सीमाप्रान्त तो नहीं, लेकिन इसका व्यापार बहुत बड़ा था।
दूसरे बड़े-बड़े प्रान्तों का शासन महामात्य करते थे।
इस तरह युत (आज का कलेक्टर-राज्य के लोगों में घूम-फिरकर उनके कष्ट जानता और मिटाता) प्रादेशिक (गायों की देख-भाल, जिलों का कार्य देखता और दुष्ट
अधिकारियों को दंड देता), नगर-व्यावहारिक (आज का डिप्टी कमिश्नर), ब्रजभूमिक (पशुओं का चिकित्सक)-इस तरह अनेक राज कर्मचारी शासन का प्रबन्ध संभालते थे।
आज से दो हजार दो सौ अठारह वर्ष पहले सम्राट् अशोक गया की यात्रा करने गए। वहां सात दिन तक रहकर धार्मिक मेला लगाया। इसके कुछ दिन बाद सम्राट् अशोक भगवान बुद्ध की जन्मभूमि लुम्बिनी के दर्शन करने गए। वहां दर्शन करनेवालों को कर देना पड़ता था। यह सम्राट् को बहुत बुरा लगा। भला महात्माओं के स्थानों पर भी टैक्स! उसने उसी क्षण इसे सदा के लिए बन्द करवा दिया।
इसी तरह सम्राट् ने अनेक तीर्थ-यात्राएं कीं।
आज हमारी भारत सरकार ने इसी महान् पुरुष के चिह्न अशोक-चक्र को राष्ट्रीय चिह्न माना है। साथ-ही-साथ अशोक के बनाए स्तम्भों पर जो तीन शेरों का चिह्न है, उसे भी सरकार ने राष्ट्रीय चिह्न माना है। ये तीन शेर-सत्य, धर्म और अहिंसा का उपदेश देते हैं। हमारी सरकार की हार्दिक कामना है कि आज हमारा देश भी सम्राट् अशोक के समय की तरह ही फिर उन्नत हो और देशवासी फूलें-फलें।
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- जन्म और बचपन
- तक्षशिला का विद्रोह
- अशोक सम्राट् बने
- कलिंग विजय
- धर्म प्रचार
- सेवा और परोपकार
- अशोक चक्र